सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

मुंबई बाल ठाकरे की बपौती है क्या ?


सब जानते हैं कि बाल ठाकरे जो कर रहे हैं वो ग़लत है...सबको पता है कि बाल ठाकरे का बयान संविधान के खिलाफ़ है..तोड़फोड़..भड़काऊ बयान...और सरेआम गुंडागर्दी आपसी सौहार्द को बिगाड़ रही है... लेकिन फिर भी सरकार क्यों बार-बार ठाकरे परिवार के सामने सरेंडर कर रही है समझ में नहीं आ रहा...? क्यों बार-बार हम गिड़गिड़ा रहे हैं और वो हमें ठेंगा दिखा रहे हैं। क्या हमारी सरकार पूरी तरह से नपूंसक हो गई है ? क्यों ठाकरे परिवार के गिरेबान तक पहुंचने से पहले कानून के हाथ कांपने लगते हैं। कानून में कमी है या फिर केंद्र-महाराष्ट्र सरकार की इच्छाशक्ति में । क्यों नहीं बाल ठाकरे और राज ठाकरे जैसे नेता सलाखों के पीछे दिख रहे हैं। अभी कल की ही बात है कि शरद पवार बाल ठाकरे के निवास स्थान मातोश्री पहुंचे और उनसे अपना गुस्सा शांत रखने का अनुरोध किया। ठाकरे के सामने हमारे केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने गिड़गिड़ाया....कहा कि आप ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को मुंबई में खेलने दें..... और बाल ठाकरे ने मालिक की तरह, कहा... ठीक है देख लेंगे। ऐसा लगा मानों मुंबई देश की नहीं बाल ठाकरे की बपौती हो । ना तो बाल ठाकरे के पास गिड़गिड़ाने में शरद पवार को शर्म आई...और ना ही बाल ठाकरे को कुछ बोलते हुए लाज आई...ऐसा लगा मानों मुंबई में देश का संविधान नहीं.. बाल ठाकरे का संविधान चलता हो। मतलब बाल ठाकरे ने जो कह दिया.. वही सही है..बाकि सब ग़लत। कुछ दिन पहले तक ठाकरे पाकिस्तानी खिलाड़ियों के पीछे पड़े थे और अब ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के पीछे पड़े हैं। ठाकरे कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमला हो रहा है तो फिर हम उस देश के खिलाड़ी को, कैसे अपने देश में खेलने दें। ठाकरे जिस तरह का बयान दे रहे हैं...उसे देखकर तो यही लगता है मानों पूरी दुनिया-जहान का उन्होंने ही ठेका ले रखा है। कौन कहां खेलेगा...कौन किसे अपनी टीम में लेगा....और कौन किसके ख़िलाफ़ क्या बोलेगा.. सब ठाकरे के ही हुक्म से बोलेगा और चलेगा। ना तो बाल ठाकरे को अपनी उम्र का लिहाज है और ना ही देश की अखंडता का अहसास...कितनी शर्म की बात है कि देश का केंद्रीय मंत्री आज एक अदने से नेता..जिसकी खुद की ना तो कोई औकात है..और राष्ट्रीय राजनीति में कोई पकड़ ... उसके पास जाकर हाथ फैला रहा है.... अनुरोध कर रहा है... कह रहा है भाई... हम पर रहम करो ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों को मुंबई में खेलने दो। शरद पवार साहब आपकी सत्ता है...आपके पास ताकत है..केंद्र में आपकी सरकार है और महाराष्ट्र में भी आपका ही हुक्म चलता है, तो फिर क्या जरूरत पड़ गई जो बाल ठाकरे जैसे नेता के पास गिड़गिड़ाने की....उत्पाती शिवसैनिक को पकड़िए...जमकर धुनिए और जेल में डालिए...देखिए फिर कैसे इन शिवसैनिकों की सिट्टी-पिट्टी गुम होती है। एक दिन चिल्लाएंगे-दो दिन चिल्लाएंगे ... तीसरे दिन कोई शिवसैनिक घर से नहीं निकलेगा.... पवार साहब.! कानून हमारे देश का बहुत बड़ा है और डंडे में बहुत ताकत है....हां, बस इस्तेमाल करना आना चाहिए। हमें पता है जो हम बोल रहे हैं ...उससे ना तो बाल ठाकरे को कोई फर्क पड़ेगा और ना ही शरद पवार को। क्योंकि सब राजनीति है...और राजनीति के आगे बड़े से बड़ा नेता भी नामर्द बन जाता है।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपने जो लिखा है हो सकता है उसमे बिहारी होने की पीड़ा हो

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  2. काफी दिनों से बाल ठाकरे,मुंबई,माई नेम इज खान के बारे मे लिखने की ख्वाहिश थी लेकिन शायद काम की वजह से मौका नही मिल पाया था..विचित्र है कि आजकल ब्लाग मे बाल ठाकरे,मुंबई,माइ नेम इज खान के बारे मे वही पढ़ने को मिलता है जो किसी भी अन्य ब्लाग मे पढ़ने को मिलता हैं.
    प्रिय सतेन्द्र जी मुंबई किसी की बपौती नही खासकर जो लोग बाल साहेब ठाकरे की आड़ लेकर मुंबई की राजनीति करते है.देश के किसी भी हिस्से मे लोग रोजगार कर सकते है.बिहार की आबादी 9 करोड़ से ज्यादा है .निकम्मे ,निठल्ले और गैर जिम्मेदाराना नेतृत्व की वजह से बिहारियों की जो दशा है वो किसी भी तरीके से छुपा नही है और यूपी भी इससे अलग नही है.

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  3. गैर जिम्मेदार नेतृत्व
    आप सोच सकते है कि जिस राज्य की आबादी 9 करोड़ से ज्यादा है और जहां सबसे ज्यादा सिविल अधिकारी तैयार होते है वहां कोई भी सेंट्रल युनिवर्सिटी नही है . पहले की बात करे जब विक्रमसीला ,नालंदा जैसे विश्वविधालय हुआ करते थे जहां ज्ञान -विज्ञान की धारा निकली वहां स्वतंत्र भारत के बाद कोई भी आईआईटी ,आईआईएम.एम्स,निफ्ट जैसे प्रतिष्ठित संस्थान नही है सवाल उठना लाजिमी है कि कौन इसके लिए जिम्मेदार है जाहिर है बिहार का निठल्ला नेतृत्व जिसने मंडल और जातिवाद का ऐसा जहर घोला कि लोगो ने अपना सरनेम छुपा दिया . बाल ठाकरे ,उद्भव ठाकरे ने कभी भी बिहार के नेताओं को उधोग धंधे लगाने से नही रोका था . कभी शिवसैनिकों ने बिहार की दी जाने वाली केंद्रीय सहायता का विरोध किया था बावजूद बिहार क्यो भारत का सबसे पिछड़ा राज्य है. जरा सोचिए.. सतेन्द्र जी जरा सोचिए केवल बाल ठाकरे को गलियाने से काम नही चलेगा 2007 के जनवरी फरवरी महीने मे कांग्रेस शासित असम मे 100 से ज्यादा बिहारी मजदूरों की हत्या की गई थी क्यो नही असम की सरकार या राहुल गांधी पीड़ितों के साथ न्याय नही कर पाये. 40 साल से ज्यादा साल तक शासन करने वाली क्यो नही बिहार का विकास कर पाये . आने वाले विधानसभा चुनाव मे जनता इसका जवाब देगी .. दुनिया जानती है कि इसी राबड़ी देवी की सरकार को सोनिया गांधी का खुल्लम खुल्ला समर्थन था और राबड़ी देवी ने बिहार के साथ क्या किया ये छुपा नही

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  4. राजद की सरकार को दशक से भी ज्यादा सपोर्ट कांग्रेस को मिला. स्वयं बिहार विधानसभा के अध्यक्ष माननीय सदानंद सिंह कांग्रेस के विधायक के रूप मे लालू की जी हजूरी करते रहे . क्यों आज कांग्रेसियों ने ठाकरे के नाम पर बिहार को फुसलाने की राजनीति कर रहे है ..... आप रोजाना ऐसे बिहारियों से मिलते होंगे जिनकी पीड़ी दुनिया के सामने जगजाहिर है ज्यादा दूर ना जाए .आपके आफिस मे एक गार्ड बिहार का है जिसकी तन्ख्वाह मात्र 4200 रूपये जिसमे से 400 रूपये पीएफ के कटते है बिना किसी हालीडे आंफ या वीकली आफ के बदले यह बंदा 12 घंटे लगातार दूसरे को सलाम करता है उसने पढ़ाई मात्र 9 वी कक्षा तक की है क्या इसके लिए बाल ठाकरे जिम्मेदार है......याद कीजिए 80 और 90 के दशक को जब पाकिस्तान की जीत पर हिंदूस्तान के शहरों मे दिवाली मनायी जाती थी,बालीवुड मे कई फिल्मकारों से डान के संबंध थे और उसी के प्रतिक्रिया स्वरूप मुंबई के लोगो ने बाल ठाकरे का समर्थन किया.....और इसी देश के जयचंदों ने मुंबई मे विस्फोट कर सैकड़ो लोगो को मौत की निंद सुला दी ..अब समय आ गया है कि बाल ठाकरे के साथ साथ इन जयचंदो के बारे मे भी लिखना शुरू करे. क्रमश:

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  5. जो बलाव माइ नेम इज खान को लेकर शिवसेना ने खड़ा किया उसे किसी भी नजरिये से उचित नही कहा जा सकता है लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले देश मे सवाल ये उठता है कि माइ नेम इज खान ही फिल्म का नाम क्यों उत्तर है कि 9/11 की घटना के बाद मुसलमानों के साथ ज्यादिती हुई उससे मानवीय दृष्टिकोण रखने वाली बिरादरी खुश नही थी और मेरा मानना है कि आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होता है और उसका कोई धर्म नही होता है .इसलिए टापीक अच्छा था .लेकिन पिछले 55 सालों से ज्यादा कश्मीरी हिंदूओं के साथ जो अन्याय हुआ इसके लिए अभी तक कोई फिल्म क्यो नही बनी ...क्या इनकी पीड़ा शाहरूख खान को नही दिखती है.. माइ नेम इज खान क्यो नाइ नेम इज कौल क्यो नही ..कश्मीरी विस्थापितों मे कई के सर नेम कौल लगते है ...जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कश्मीरी पीड़ितों की दुर्दशा को देखने के लिए उनसे मिलने को पहुंचे तो इनकी स्थिति मनमोहन सिंह से देखी नही गयी ..

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  6. वहां के जो जमीनी हालात मे उसके बारे मे मै कुछ लिखना चाहता हूं.
    जहां कश्मीरी विस्थापित रहते है उनकी गलियों की चौड़ाई मात्र 3 गज है यानि किसी की मौत के बाद लाश को कंधे देने के लिए चार लोग एक साथ इस सकरी गली मे चल नही सकते है . एक तंबू मे तीन पीढ़िया साथ रहती है .घर के बुजुर्ग रात मे कुछ देर के लिए बाहर निकल ठंडी या गर्मी मे वक्त गुजारते है ताकि स्त्री पुरूष को कुछ एकांत मिल सके .मेरे कहने का मतलब आप समझ रहे है ना....क्या इसे पर्दे पर उतारने की जहमत शाहरूख या करण जौहर या इस देश का दोमुंहा नेतृत्व क्यो नही उठाता..क्रमश:

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  7. आज भी कश्मीरी विस्थापितों के दिल की धड़कन तेज हो जाती है जब उनके कानों मे ये नारे गंजते है कश्मीरि हिंदू वापस जाओं अपनी लड़की छोड़ दो क्या इन लोगो मे कभी बगावत की भावना नही काम करती होगी . भारत सरकार के फैसले और कश्मीरी पंडित के इंतजार ने 55 साल से ज्यादा का सफर तय किया लेकिन अभी भी हालात कश्मीरी पंडितो के जस के तस है . कश्मीरी हिंदूओ ने कभी भी अपने आपको वोट बैंक के रूप मे उपयोग नही किया . या यो कहे कि उन्होने कभी भी किसी के बहकावे मे सतप्रतिशत मतदान किसी पार्टी विशेष के पक्ष मे मतदान नही करते है....क्या यही न्याय का तकाजा हैं....

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  8. जब कश्मीर मे भारतीय तिरंगा जलाया जाता है पाकिस्तान जिंदाबाद के नारा लगाय जाता है तो सवाल यह उठता है कि कश्मीर मे भारत का कौन से चेहरा दिख रहा है और क्यो नही इस मुद्धे पर कभी कुछ लिखा जा रहा है . यह सिर्फ भारत मे ही होता है कि भारत के टुकड़े पर पलने वाले लोग भारत के झंडे को जलाते है . जब 26 जनवरी को पूरे भारत मे झंडा लहराया जाता है तो कश्मीर के लाल चौक पर झंडा नही फहराया जाता है . यह सिर्फ भारत मे होता है क्यो नही केवल 12 फरवरी के विषय पर ही लिखा गया और क्यो 26 जनवरी को भुला दिया गया. क्रमश:

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  9. मै बाल ठाकरे की नीतियों मे भरोसा नही करता हूं लेकिन जब इस देश का दोहमुंहा नेतृत्व लगातार हो रहे हमलो पर केवल जुगाली करता है तो ऐसा लगता है कि पाकिस्तान से सहानुभूति रखने वाले से यह पूछा जाना चाहिए कि वो किस आधार पर पाकिस्तान खिलाड़ियों या पाकिस्तानी फनकारों का समर्थन करते है. आज फिल्मों मे या एलबम मे पाकिस्तानियों की आवाज सुनने को मिलता है वो 100 दिनों तक भारत मे रहते है और भारत के दाम और भारत के नाम को खाकर फिर अपने देश रवाना हो जाते है लेकिन क्या कभी किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी या पाकिस्तानी कलाकारों ने कभी भी वहां की सरकार से यह कहने की जहमत उठाई कि जो भी भारत मे हो रहे आंतकवादी हमले के लिए जिम्मेदार है उस पर पाक की सरकार कार्यवाई करे. कभी नही 13 फरवरी 2010 पुणे हमले 16 मौत, 26 नवंबर 2008 -300 लोगो की मौंत, 13 सिंतबर 2008 25 लोगो की मौंत, 26 जुलाई 2008 55 लोगो की मौंत,13 मई 2008 – 60 लोगो की मौंत,11 जुलाई 2006 250 लोगो की मौंत, मार्च 2006 -25 लोगो की मौंत, अगस्त 2007 – हैदराबाद ब्लास्ट -60 से ज्यादा लोगो की मौत कौन जिम्मेदार –पाकिस्तान की सरकार उसके साथ वो सभी लोग जिसने आतंकवादियों का बौद्धिक रूप से समर्थन किया है लेकिन क्या कभी शाहरूख खान ने इस मामले पर कभी कुछ कहा मै यह सवाल शाहरूख के बारे मे इसलिए कर रहा हूं क्योंकि केवल पाकिस्तान खिलाड़ियों के बारे मे शाहरूख ने ही सकारात्मक टिप्पणी की थी ,माफ करे मै शाहरूख को उम्दा कलाकार मानता हूं और देशभक्ति मे पर भी मुझे कभी संदेह नही है लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस पाकिस्तानियों के हाथों हम अक्सर लहूलूहान होते है उसके प्रति ये दिल्लगी क्यों क्या कभी भी पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने पाकिस्तान सरकार से मिलकर इस विषय पर एतराज जताया.कभी नही .. अगर बाल ठाकरे नपुसंक है तो हजारों किसानों की आत्महत्याएं सैकड़ो बैगुनाह की जान जाने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय नेतृत्व को क्या कहेंगे आप
    क्रमश:

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