रविवार, 31 जनवरी 2010

हंगामा इसलिए है बरपा...


इस बार क्रिकेट के बाजार में पाकिस्तानी माल नहीं बिका। माल चोखा भी था और ताजा भी...ऐसे में उम्मीद तो यही थी कि ये माल सभी को लुभाएगा..और लुभाएगा ही क्यों ? सबसे ज्यादा दाम में भी बिकेगा, लेकिन वक्त का सितम देखिए...जिसकी कीमत सबसे ज्यादा लगनी चाहिए थी..उसे खरीदने की बात तो दूर मोलभाव भी करने वाला कोई खड़ा नहीं हुआ.. नतीजा पाक का ताजा माल आईपीएल पार्ट थ्री के लिए बासी हो गया। ऐसा नहीं था कि सिर्फ पाकिस्तानी माल ही आईपीएल की मंडी में पड़ा रहा..बल्कि क्रिकेट की मंडी में पहुंचे दुनिया भर के सौ से ज्यादा खिलाड़ी इस बार बिक नहीं सके...लेकिन नहीं बिकने वालों में सबसे ज्यादा बवेला मचाया पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने.. किसी ने कहा उनका अपमान हुआ.. तो किसी ने कहा धोखा .. किसी ने मोदी को कोसा.. तो किसी ने विदेश मंत्रालय को जिम्मेदार बताया। पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने आईपीएल में खेलने को लेकर भारत के खेल बिरादरी से लेकर सियासी गलियारे तक हल्ला मचाया, उसे देखकर तो यही लगा कि ये पाकिस्तानी खिलाड़ियों का क्रिकेट प्रेम है, लेकिन वास्तविकता में ये क्रिकेट प्रेम नहीं .. पैसा प्रेम है। दरअसल पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल में खरीदा जाता तो उन्हे इतना पैसा मिल जाता जितना कई सालों तक अपने देश की तरफ खेलने के बाद भी नहीं मिल पाता। पीसीबी अपने क्रिकेटरों को तीन ग्रेडों में बांटकर पगार देता है। ‘ A ’ ग्रेड के खिलाड़ियों को प्रति माह ढाई लाख रुपए..‘ B ’ ग्रेड के खिलाड़ियों को एक लाख 75 हजार रुपये और ‘ C’ ग्रेड में शामिल पाकिस्तानी खिलाड़ियों को एक लाख 25 हजार रुपये मिलता है। यानि कोई पाकिस्तानी खिलाड़ी ग्रेड A में भी हो तो साल भर में वो 30 लाख से ज्यादा कमा नहीं पाता होगा, लेकिन अगर उन्हे आईपीएल में खेलने का मौका मिलता है तो डेढ़ महीने में ही उनकी कमाई साढ़े तीन करोड़ रुपये तक हो जाती। तो समझे ना !!! पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लिए हंगामा यूं ही नहीं बरपाया..हंगामा इसलिए हैं बरपाया..!!!

रविवार, 3 जनवरी 2010

BCCI : चोरी भी, सिनाजोरी भी !



बचपन से सुनता आया हूं... ग़लतियों को कभी मत छुपाओ...बुराई को कभी बढ़ावा मत दो...अगर तुम वास्तव में किसी के शुभचिंतक हो तो फिर उसके सबसे बड़े आलोचक बनो....घर में मम्मी-पापा से सुना ...स्कूल में शिक्षक ने बताया...लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के जितने भी अधिकारी हैं..वो लगता है ऐसे बुनियादी शिक्षा से महरुम है...ऐसे तो कई बार बीसीसीआई की दिमागी संतुलन पर सवाल उठे हैं...लेकिन इस बार जो नया वाकया कोटला विवाद पर बयान के रूप में सामने आया है, उससे तो ये बात पूरी तरह साबित हो गई ...कि सच में बीसीसीआई का उपरी तल्ला खाली हो चुका है। 27 दिसंबर 2009 को कोटला पर कैसा कोहराम हुआ, ये हमने भी देखा और आपने भी देखा होगा...कोटला की पिच किस कदर खराब थी ये बताने की जरूरत नहीं... पूरी दुनिया ने देखा कि 23 ओवर के खेल में किस तरह गेंद ज़मीन चूमकर हवा लहराई.. कितनी बार गेंद जयसूर्या के सर से पार गई... किस तरह सुदीप की गेंद पर दिलशान बल्ला छोड़ औंधे मुंह गिर पड़े... किस तरह गेंद की मार से जयसूर्या तिलमिला गए...लेकिन लग रहा है जब ये सारा वाकया हो रहा था तो बीसीसीआई के अधिकारियों के घरों से बिजली गायब थी...तभी तो जो कुछ घटा वो बीसीसीआई ने नहीं देखा.... या यूं कहें कि जब कोटला पर मैच चल रहा था...उस वक्त बीसीसीआई के अधिकारी आंख-मिचौली खेल रहे थे...और किसी एक की आंख पर नहीं बीसीसीआई के सारे अधिकारी की आंख पर पट्टी बांध दी गई थी... खराब पिच जो कुछ होना था वो तो हो गया...नियम के मुताबिक बीसीसीआई से आईसीसी ने जवाब तलब किया ....कि किस परिस्थिति में नई नवेली पिच पर अंतरराष्ट्रीय मैच करा दिए गए...क्यों मुकाबले के पहले पिच को जांचा परखा नहीं गया........पता है ? इस सारे का सवाल का जो जवाब Bcci ने तैयार किया वो क्या है बीसीसीआई ने कहा है पिच बिल्कुल भी खराब नहीं थी....अगर खराब होती तो क्या 23 ओवर के खेल में सिर्फ सात बार ही गेंदें खतरनाक तरीके से उठती ? मतलब अपना जवाब नहीं देकर बीसीसीआई ने खुद आईसीसी से ही सवाल पूछ डाले। साफ है कि बीसीसीआई तभी पिच को खतरनाक मानता जब 23 ओवर के खेल में करीब 100 से ज्यादा गेंदें खतरनाक तरीके से उठती और उस गेंद से एक- दो नहीं, लंका के सभी खिलाड़ी घायल हो जाते। चोरी और सिनाजोरी तो देखिए ! बीसीसीआई ने यहां तक कहा डाला है कि जब उनकी टीम न्यूज़ीलैंड में खतरनाक पिच पर खेली थी, तो उस वक्त आईसीसी क्यों खामोश रहा। अरे भाई साहब ! अपनी गलतियां देखिए ना.... दूसरों की ग़लतियों को क्यों गिना रहे हैं। बीसीसीआई ने कोटला की पिच के बारे में जितनी भी दलील दी है मेरे-आपके क्या पूरी दुनिया के पल्ले से बाहर है. डीडीसीए को बचाने और खुद की ग़लतियों को छुपाने के लिए बीसीसीआई जो कुछ दलील दे रही है ...मैं तो उससे इक्तेफाक नहीं रखता...क्या आप इक्तेफाक रखते हैं। हमें जरूर बताइएगा...नहीं तो बीसीसीआई की तरह ग़लतियों को बढ़ावा देने वालों में शामिल हो जाएंगे।