मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

आईपीएल,ललित मोदी और विवाद

आईपीएल सीजन 3 के मैदान की जंग खत्म तो हो गई लेकिन असली जंग अभी भी समाप्त नही हुई है और हरेक मंच और हरेक स्तर पर ऐसे चेहरे की तलाश की जा रही है जिसमे पारदर्शिता हो और जिसमे आईपीएल पर लगे धब्बे को नये सिरे से धोने की क्षमता भी हो.सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था और सभी लोग मैदान पर दिखने वाले रोमांच का आनंद ले रहे थे. किसी ने यह सोचा भी नही था आईपीएल से हो रहे बेसुमार पैसे का स्रोत क्या है और किस माध्यम से आईपीएल में इतने पैसे का निवेश हो रहा था.शायद मीडिया को भी नही ...लेकिन 11 अप्रेल को आईपीएल के कमिश्नर ललित मोदी के उस बयान से हड़कंप मंच गया जिसमे उन्होने यह कहा कि आईपीएल की नई कोच्ची टीम की फ्रेंचाइजी में विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर की महिला मित्र सुनंदा पुष्कर की भी हिस्सेदारी है..... हालांकि शशि थरूर का विवादों से रिस्ता काफी पुराना है.... और उन्हे हटाकर प्रधानमंत्री ने दूरदर्शिता का ही परिचय दिया है...इसके बाद मचे बवंडर के बीच 18 अप्रेल को भारी मन से थरुर को इस्तीफा देना पड़ा....21 अप्रेल को आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने आईपीएल से जुड़े संगठनो पर छापामार कार्यवाई की..... 25 अप्रेल को आईपीएल के फाइनल मैच के तुरंत बाद ललित मोदी के आईपीएल के कमिश्नर पद से हटा दिया गया लेकिन आम जनता के मन मे कई सवाल अभी भी है,क्योकि केंद्र सरकार के दो मंत्री शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल सीधे सीधे आईपीएल के लपेटे मे आ रहे है, हालाकि शरद पवार के रूतबे को देखते हुए ऐसा नही लगता है कि कांग्रेस इनके विरुद्ध कोई कदम उठा पाएंगी,वैसे भी मंत्री का पहला काम है कि जिस विभाग की जिम्मेदारी उन्हे दी गई है पहले वे संभाले लेकिन देश जानता है कि पवार इसमे असफल रहे है..आइये जाने उस शख्स के बारे मे जिसने आईपीएल को एक लोकप्रिय ब्रांड बनाने मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जिसके आक्रामक और डिप्लोमेटिक कैंपेन से आईसीएल अपनी बोरिया बिस्तर समेटने पर मजबूर हो गया जी हां हम बात कर रहे है आईपीएल से बर्खास्त ललित मोदी के बारे मे.....
अगर जगमोहन डालमिया ने क्रिकेट को एक आसानी से बिकने वाला ब्रांड बनाया तो ये ललित मोदी है थे जिन्होने क्रिकेट की लोकप्रियता को पैसे मे बदलकर आईपीएल के खजाने मे मात्र तीन सालो मे 2 बिलियन डालर जमा करा दिये ....
मोदी के दादाजी राजा बहादुर गुजरमल की गिनती देश के प्रसिद्ध उधोगपतियों मे होती है जिन्होने मोदी ग्रुप आफ इंडस्ट्री की स्थापना की थी. मोदी ग्रुप आंफ इंडस्ट्रीज के अंतर्गत मोदी सुगर,मोदी वनस्पति,मोदी पेंटस,मोदी आयल,मोदी स्टील,मोदी सिपिंग एण्ड विभिंग,मोदी साप एण्ड मोदी कारपेट कंपनी आती है .राजा बहादुर की तीन संताने थी कृष्ण कुमार मोदी,भूपेंद्र कुमार मोदी,और विनय कुमार मोदी.कृष्ण कुमार मोदी की तीन संताने थी चारू मोदी भाटिया,ललित मोदी, और समीर कुमार मोदी. अमेरिका के नार्थ करोलिना में ड्रग्स और अपहरण मे सजा काटने के बाद भारत आये मोदी ने अपने पिता के के मोदी के व्यवसाय को संभाला लेकिन मोदी का इसमे मन नही लगा, 90 दशक के शुरूआत मे जब केबल और सेटेलाइट प्रसारण का व्यवसाय तेजी से पांव पसार रहा था मोदी ने इस व्यवसाय के नब्ज को पहचान कर मोदी एंटरटेनमेन्ट नेटवर्क (मेन) की स्थापना की1.1993 मे मेन ने भारत मे व्यवसाय को बढ़ाने के लिए अमेरिकी की प्रसिद्ध कंपनी वाल्ट डीजनी से10 साल का समझौता किया. समझौते के अनुसार जहां इस व्यवसाय मे वाल्ट डीजनी के 51 प्रतिशत शेयर थे वही बाके बचे शेयर मेन के हिस्से मे आये.. इन दोनो कंपनी ने 10 साल के समझौते के शुरूआत दौर मे 30 से 40 करोड़ रूपये मार्केट से कमा लिये..1995 मे वाल्ट डिजनी ने अपनी सिस्टर कंपनी ईएसपीएन के भारत मे वितरण के लिए मेन से समझौते किये ताकि इएसपीएन को केबल पर पेड स्पोर्टस चैनल बनाकर क्रिकेट के दर्शकों से भरूपर पैसे कमाया जा सके और ऐसा ही हुआ .इएसपीएन भारत मे चुनिंदा पेड चैनल मे से एक था.कुछ ही समय मे इएसपीएन भारत मे ज्यादा देखे जाने वाले स्पोर्टस चैनल के रूप मे मशहूर हो गया.. 2001-02 आते आते मेन खेल प्रसारण वितरण के जरिये 70 करोड़ रूपये कमाने मे कामयाब रहा..लेकिन मोदी इस धंधे को आगे ले जाने मे असफल रहे और ऐसा कहा जाना लगा कि मेन के किसी दूसरे कंपनी के समझौते का अंत कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही खत्म होता है यानि किसी भी दूसरी कंपनी के साथ व्यवसायिक समझौता ज्यादा सौहार्दपूर्ण वातावरण मे समाप्त नही हुआ.मेन ने डीडी स्पोर्टस के साथ भी खेल को लेकर व्यवसायिक समझौते किये लेकिन कहा जाता है कि यह मामला अभी तक कोर्ट मे ही पड़ा है...2004 तक आते आते मोदी की मेन कंपनी की हालत पतली हो गयी है और इसके कर्मचारियों को सैलरी के भी लाले पड़ गये. मुंबई छोड़कर बाकी जगह पर स्थित मेन कंपनी के कार्यालय बंद हो गये.2007 मे मोदी ने आखिरी दाव लगाया . मोदी ने ट्रेवल व लिविंग चैनल की तर्ज पर पहले चैनल वोएजेस को लांच करने का प्लान बनाया .हालांकि यह योजना धरी रह गई.जाहिर है कि मोदी तभी सफल होते है जब उन्हे खुले हाथ काम करने को मिले.साझेदारी या परिवार की कंपनियों मे वो सफल नही रहे.लेकिन जब राजस्थान क्रिकेट एसोसिएसन और बाद मे आईपीएल अपने दम पर चलाने का मौका मिला तो ललित मोदी ने अपनी कार्यकुशलता से आईपीएल के खजाने को पैसे और शोहरत से भर दिया..लेकिन व्यवसाय का नियम है कि आपको पारदर्शिता के साथ परिवारवाद के नीतियों से दूर रहना होगा और मोदी यहां असफल रहे . किसी भी सही चीजो का शौकीन होना कोई बुरी बात नही है लेकिन जनता की भावना किसी चीज मे जुड़ी है और उसकी भावनाओं का जब आप अपने लिए इस्तेमाल करते है तो उसका अंजाम भी गलत होता है.....मोदी ने अपने आईपीएल कमिश्नर पद के दौरान अपने साढ़ू सुरेश चेलाराम को राजस्थान रायल्स मे 44 प्रतिशत शेयर दिलवाये.दामाद गौरव वर्मन की कंपनी को मोबाइल,बेवसाइट आदि को ठेका भी मनमाने दाम मे बेचा..
मोदी के बारे मे कहा जा सकता है ---He is a men with great ideas but execution has always been his weakness…..

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

तथाकथित बौद्धिक पाखंड, और बेशर्मी एक चैनल की

क्या अंतिम संस्कार भी जोर शोर से होता हैं
मित्रो,
आज 20 अप्रेल और पूरे 14 दिन हो गये -6 अप्रेल 2010 का दिन देश के साथ साथ 76 परिवारों के लिए भी कहर बनकर टूटा जब दंतेवाड़ा के ताड़मेटला के जंगल मे नक्सलियों ने एम्बुस लगाकर 76 जवानों को मौत के घाट उतार दिया. नक्सलियों द्वारा किये गये इस घृणित कृत्य की पूरे देश ने आलोचना की और गृह मंत्री के साथ पूरा विपक्ष एक जुटता के साथ खड़ा था. इस घटना के बाद कई माताओं ने अपने बेटे को खो दिया, कई बहने ये कभी ना चाहेंगी कि उनके जीवन मे कभी रक्षा बंधन भी आए, कई औरते ये कभी नही चाहेंगे कि उसकी जिंदगी मे करवा चौथ नाम का कोई पर्व आए.
लेकिन इसी देश मे जब संचार क्रांति अपने चरम पर है और लोग किसी भी समाचार के लिए विजुअल मीडिया पर यकीन करते है .उसी दौर मे एक ऐसा भी चैनल है जो अपने आप को अन्य चैनल से अलग मानता है और इस चैनल के बारे मे कुछ लोग ये भी कहते हैं यहां देश के सर्वश्रेष्ठ संपादक,रिपोर्टर ,और एंकर अपनी सेवा देते है .
और यही वह चैनल है जो किसी भी रिपोर्ट पर अपने चैनल को दूसरे अन्य हिन्दी चैनल की तुलना करने मे भी पीछे नही हटता..इसी चैनल पर इसके रिपोर्टर रोज रात देश देश में मूल्यों और आदर्शों की गिरावट से लेकर नैतिकता और सांस्कृतिक मूल्यों की बात करके ये जताने की कोशिश करते हैं कि इस देश की संस्कृति और मर्यादा का ठेका उन्होंने ही ले रखा है।लेकिन इसी चैनल द्वारा छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ के जवानों की खबर को दिखाते समय शहीद हुए तमाम जवानों का जो अपमान किया है उसका यह चैनल शायद ही कभी पाप धो पाए। 7 अप्रैल को सुबह 9 बजे से इस चैनल पर दिखाया जा रहा था कि ' नक्सली हमले में शहीद हुए सैनिकों के शव उनके घरों तक पहुँचाए जाएंगे और उनके अंतिम संस्कार की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही है।' देश के लिए शहीद होने वाले किसी शहीद का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है कि इस देश का कोई चैनल उसके अंतिम संस्कार की तैयारियों को जोर-शोर से की जा रही तैयारियाँ बताए। क्या इस तथाकथित बौद्धिकवादी एंकर और तमाम हिन्दी प्रेमी ये समझाने की कोशिश करेंगे कि इस देश में किसी के अंतिम संस्कार की तैयारियाँ जोर शोर से किए जाने की परंपरा कहाँ से शुरु हुई? क्या इस चैनल में बैठे लोग दिमागी रूप से इतने दिवालिये हो चुके हैं कि उनके पास शहीदों के सम्मान में कहने के लिए दो शब्द भी नहीं हैं? क्या इस चैनल की समाचार वाचिका ने शहीदों के अंतिम संस्कार की खबर को सानिया मिर्ज़ा की शादी की खबर समझा था जो उनके अंतिम संस्कार की तैयारियाँ जोर-शोर के की जाने की बात बार बार दोहराई जा रही थी।
जरा इस चैनल की करतूत दूसरी करतूत
बात निकली है तो एक बात इस चैनल को फिर से याद दिला दें कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में ढाँचा गिराए जाने के दौरान लालकृष्ण आडवाणी द्वारा दिए गए भाषण को लेकर उनकी सुरक्षा में तैनात अंजू गुप्ता द्वारा 26 मार्च को दिए गए बयान को लेकर इस चैनल ने लालकृष्ण आडवाणी पर तीखी टिप्पणियाँ प्रस्तुत करते हुए ये जताने की कोशिश की थी लालकृष्ण आडवाणी कितने झूठे और बेईमान किस्म के नेता हैं. लेकिन लोकसभा चुनावों के ठीक पहले इसी चैनल ने इन्हीं लालकृष्ण आडवाणी को देश की सेवा के लिए पुरस्कार से देकर सम्मानित किया. जब यह चैनल लालकृष्ण आडवाणी की योग्यताओं के लिए उन्हें पुरस्कृत कर चुका है तो फिर वे झूठे और बेईमान किस्म के नेता कैसे हो सकते हैं? कहीं ये तो नहीं कि इस चैनल ने आडवाणी को पुरस्कार इसलिए दिया था ताकि वे प्रधान मंत्री बन जाएँ तो उसका पुरस्कार इस चैनल को भी मिल सके.
अब आप ही बताये कि हर हमेशा दोषियों को कटघरे मे खड़े करने वाले लोगो पर क्या कार्यवाई होनी चाहिए.....
ये ही देश के तथाकथित बुद्धिजीवी हैं जो देश के बंटाधार पर लगे हैं.
जरा इस चैनल की बेशर्मी और जवानों के प्रति अनादर का भाव देखे .
7 अप्रैल, बुधवार की रात 9 बजे प्रसारित किए जाने वाले समाचार के साथ एक मोबाईल कंपनी के विज्ञापन के साथ अंगेजी शब्द 'Moment of the Day' के साथ नक्सली हमले में शहीद हुए जवानों के शव दिखाए गए। शहीद जवानों के साथ ये घिनौना मजाक देखकर ऐसा लगा मानो शहीदों की शहादत को अंग्रेजी के पैरों तले रौंदा जा रहा हो। पहले तो हमको लगा कि हमारी ही अंग्रेजी का स्तर घटिया है और हमको 'Moment of the Day' का मतलब नहीं मालूम होगा, इस चैनल और इसके एंकर तो समझदारों से भी बड़े समझदार हैं, देश के दो दो कौड़ी के नेताओं से लेकर बड़े बड़े और घटिया नेताओं के साथ देश की हर समस्या पर गंभीरता से साक्षात्कार करते हैं, उनकी भी सुनते हैं और उनको सुनाते भी हैं, उनकी अंग्रेजी हमारी दौ कौड़ी की अंग्रेजी से ज्यादा अच्छी होगी। इसलिए हमने 'Moment of the Day' का अर्थ इंटरनेट पर ही खोजने की कोशिश की। जब हमने 'Moment' शब्द का अर्थ अलग अलग वेब साईट और शब्दकोषों में देखा तो हमारे पैरों तले जमनी ही खिसक गई। 'Moment' का मतलब था 'कोई ऐतिहासिक या यादगार दिन या ऐसा दिन जो हमारी जिंदगी में बार बार आए।'
क्या इस देश के वीर जवानों की शहादत इस चैनल के लिए एक ऐसा दिन है जो बार बार आना चाहिए। चैनल में बैठे अंग्रेजी के गुलामों को चाहिए कि वे खबरें देने के साथ ही देश की संस्कृति और मूल्यों को भी जान लें। ऐसा अगर किसी और देश में होता तो उस देश के लोग और वहाँ की सरकार उस चैनल के तमाम कर्ताधर्ताओं को सींखचों में बंद कर देती। लेकिन ये तो इस देश का दुर्भाग्य है कि इस देश पर वे लोग राज कर रहे हैं जिन्हें देश की भाषा, संस्कृति और मूल्यों से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में विदेशी मानसिकता से चलेन वाले ऐसे चैनल अगर इस देश के शहीदों की शहादत से लेकर यहाँ की संस्कृति और मूल्यों के साथ खिलवाड़ करे तो उनका क्या बिगड़ सकता है?
अंग्रेजी शब्द मोमेंट का क्या मतलब होता है ये आप भी देखिए और ये भी विचार कीजिए कि क्या सैनिकों के शव के साथ 'Moment of the Day' दिखाकर इस चैनल ने देश के इन शहीद जवानों का अपमान नहीं किया है?
दोस्तो आप समझ गये होंगे कि मै किस चैनल की बात कर रहा हूं..
मैने पहले भी कहा था और इस बात मे पूरी तरह यकीन रखता हूं कि मीडिया संमाज का दर्पण होता है और अगर दर्पण पर धुंध पड़ जाए तो लोग उस दर्पण को देखना भी पसंद नही करते है, समाचार चैनल को किसी भी विचारधारा या पार्टी के व्यक्तिगत दृष्टिकोण से प्रभावित हुए बिना काम करना चाहिए ताकि लोगो का विश्वास बना रहना चाहिए...
मै इस चैनल की बुराई नही करता हूं लेकिन जो सच्चाई है उसे आपके सामने हमने पेश किया हैं....

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

नक्सली हिंसा और रक्तरंजित दंतेवाड़ा

रक्तरंजित दंतेवाड़ा और हत्यारे नक्सलीं
एक साल से भी कम वक्त मे नक्सली ने एक बड़ी वारदात को अंजाम देते हुए 76 जवान को मौंत के घाट उतार दिया. 6 अप्रेल 2010 छत्तीसगढ़ के इतिहास की सबसे रक्तरंजित सुबह बनकर आयी जब पूरी दुनिया ने नक्सलवाद का सबसे क्रूरतम और घिनौना चेहरा देखा, और 76 परिवारों मे किसी ने भाई, तो किसी ने पिता तो किसी ने अपना पति को खो दिया. ये पहला मौका नही जब नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मियों को अपना निशाना ना बनाया हो इससे पहले भी उन्होने सुरक्षाकर्मियों के साथ साथ आम नागरिकों को भी मौत के घाट उतारा है लेकिन एक साथ इतने जवानों का नरसंहार उन्होने पहली बार किया है .हालांकि नकस्लियों के लिए नरसंहार कोई नयी बात नही है.भारत मे दुर्घटनाये घटती है तीन चार दिन तक लोग आहत दिखते है सरकारे औपचारिकताएं पूरी करती है और जिंदगी फिर उसी ढर्रे पर चलने लगती हैं. लेकिन एक सवाल जिसका जवाब आज तक नही मिल पाया है कि आखिर कब तक सुरक्षाकर्मी या सामान्य नागरिक नक्सली हिंसा के शिकार होते रहेंगे. सीधी सी बात है जिसका खोता है वही ढूंढ़ता है और जिन 76 लोगो को नक्सलियों ने निशाना बनाया है उसका दर्द भी इन 76 परिवारों को ही होगा. दंतेवाड़ा के ताड़मेटला का जंगल जहां पर ये घटना घटी वह नक्सलियों का गढ़ कहा जाता है जहां सरकार अपनी पकड़ बनाने के लिए प्रयास कर रही हैं.4 अप्रेल 2010 से सीआरपीएफ की 62 वी बटालियन की एक कंपनी ग्रीन हंट अभियान के तहत सर्चिंग मे लगी थी.इस कंपनी मे कुल 82 जवान और आफिसर शामिल थे.अभियान में लगे जवान दिन भर सर्चिंग के बाद चिंतलनार थाने में कैंप करते थे. घटना की रात जवान वही सो रहे थे.नक्सलियों ने जवानों की गतिविधियों को ध्यान में रखकर सोची समझी साजिश के तहत एम्बुस लगाया.इससे पूरी कंपनी उनके घेरे में फस गई और देखते ही देखते ही 76 जवान मौंत के गाल मे समा गये.हमला करने वाले नक्सलियों की संख्या 1000 से ज्यादा थी और आप समझ सकते है कि 82 जवान किस तरह हजार नक्सलियों का सामना कर पाते. लेकिन कब तक नक्सली अपने रणनीति मे सफल होते रहेंगे और कब इस देश से नक्सलियों का खात्मा होगा. जब श्रीलंका से एलटीटीई का खात्मा हो सकता है पंजाब से आतंकवाद का खात्मा हो सकता है तो भारत से नक्सली और नक्सली विचारधारा को क्यो नही खत्म किया जा सकता है. कुछ लोग यह तर्क देते है कि हिंसा के रास्ते नक्सली समस्या का समाधान नही हो सकता है लेकिन एलटीटीई या पंजाब से आतंकवाद का समाप्ति भी तो सैन्य तरीके से ही तो हुई .क्योकि मानवता के हत्यारे ये नक्सली कानून या संविधान की भाषा नही समझ सकते है . अब समय आ गया है कि किसी भी मानवाधिकार की कोई बिना परवाह करते हुए इस नक्सलियों से कठोरतम तरीके से निपटा जाए. देश मे इस समय नक्सलियों के खिलाफ वातावरण है और सरकार को चाहिए कि इस वातावरण का उपयोग कर नक्सलियों को उड़ीसा,आंध्रप्रदेश,छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र,झारखंड,बिहार से समाप्त कर दे .क्योकि कब तक हम नक्सली समस्या और हिंसा को टालते रहेंगे और कब तक देश के जवान और भोली भाली जनता नक्सली हिंसा का शिकार बनते रहेंगे. इसमे कोई शक नही है कि नक्सली हिंसा हमारी 60 सालों की राजनीतिक और प्रशासनिक असफलता का नतीजा है .सरकारी तंत्र में फैला भ्रष्टाचार, कुछ मुट्ठीभर लोगो मे देश की संपदा का बड़ा हिस्सा होने से निरक्षर और युवकों मे निराशा का वातावरण है और इसे दूर करने के लिए पुख्ता प्रयास करने की आवश्यकता है लेकिन इस तर्क के आड़ मे नक्सलियों से कोई हमदर्दी नही दिखानी चाहिए क्योकि जिस राह पर नक्सली चल रहे है और जो उनका लक्ष्य है वह देश की एकता और अखंडता के लिए घातक सिद्ध हो रहे है. पहले ही सरकार ने इस मामले मे उदासीनता का परिचय दिया है लेकिन ईमानदारी और पारदर्शिता से अगर सारी कल्याणकारी योजनाओं को धरातल पर उतारा जाए तो भोले भाले आदिवासी नक्सलियों के बहकावे मे नही आएंगे. सुरक्षा तंत्र,स्थानीय तंत्र,खुफिया तंत्र मे समन्वय की जोरदार आवश्यकता है जिसके आधार पर नक्सलियों को मुहतोड़ जवाब दिया जा सकता है... ताकि फिर कोई निर्दोष या निहत्थे नक्सलियों के निशाने पर ना आये पाये.बिना किसी रहमदिली के नक्सलियों के खात्मे का वक्त आ गया है....और हम उम्मीद करते है कि जिस तरह भारत ने दूसरे अन्य संकट पर विजय पायी है उसी तरह नक्सली हिंसा पर भी विजय मिलेगी.. एक बात और अगर किसी भी स्तर पर तथाकथित बौद्धिक वर्ग के लोग नक्सलियों का समर्थन करते है तो ऐसी आवाज और ऐसे समर्थन के खिलाफ भी कठोरतम कार्यवाई की जानी चाहिए क्योंकि इन मावनाधिकारवादियों ने नक्सली हिंसा के शिकार जवानों के परिवारों की पीड़ा जानने की कोई कोशिश कभी नही की है.