शुक्रवार, 18 जून 2010

कब सुखेंगे भोपाल के जख्म,क्यों मजबूर हैं हम

कब सुखेंगे भोपाल के जख्म,क्यों मजबूर हैं हम
भोपाल गैस त्रासदी के 26 साल कुछेक महीने बाद पूरे हो जायेंगे लेकिन पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगने की कोई संभावना नजर नही आ रही है ,रही सही कसर 9 जून 2010 की अदालती फैसले ने पूरी कर दी है. इस मामलें मे अदालत कर भी क्या सकती थी क्योंकि सीबीआई ने मामूली धाराएं लगाकर भोपाल गैस के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ केस को कमजोर करने की कोई गुंजाइस नही छोड़ी थी. क्या हम भारतीयों की यही नियती है. सरकारी रिपोर्ट पर ही अगर भरोसा करे तो यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के टैंक नंबर 610 से निकली जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाने के कारण तकरीबन 15 हजार लोगो की मौंत हो गई .जो बच गये उनकी जीवन मौत से भी बदतर हो गया..हालांकि हरेक साल भोपाल और देश के कई दूसरे हिस्से में 3 दिसंबर को गैस पीड़ित लोग धरना प्रर्दशन कर सरकार से इंसाफ की भीख मांगते है लेकिन इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नही पड़ता है. सरकार के लिए परिस्थितियां बिल्कुल सहज ही होती अगर टैलीविजन चैनलों पर ये नही दिखाया जाता है कि किस तरह हजारों मौतों का गुनेहगार वारेन एंडरसन नीले कलर के एम्बेस्डर को बड़े शान के साथ सुरक्षित हवाई अड्डे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पहुंचाया जा रहा हैं और इसके बाद से ही लोगो के जहन मे ये सवाल उठने लगा कि आखिर इतने बड़े गुनहगार को देश से सुरक्षित बाहर किसने भिजवाया....
जाहिर हैं कि 1984 मे देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी थे और सीएम अर्जुन सिंह थे..कलेक्टर हो या एसपी उनके सामने नेताओं के आदेश के मानने के अलावा कोई विकल्प नही बचता हैं और अगर वारेन एंडरसन भोपाल और दिल्ली से सुरक्षित अमेरिका पहुंच जाता है तो इसमे अर्जुन सिंह और राजीव गांधी की भूमिका पर सवाल तो उठते ही हैं..कितना मजबूर होता है एक भारतीय और उसकी जिंदगी का कितना मतलब कितनी सरकार के लिए होती हैं ये उस समय के राजनेताओं द्वारा किये गये गैर जिम्मेदाराना रूख से स्पषट हो जाता है. भोपाल गैस त्रासदी से पीड़ित लोगो को आज भी इंसाफ का इंतजार है 84 के बाद कितनी सरकारे बदली लेकिन एंडरसन को अमेरिका से वापस लाने की ईमानदार कोशिश किसी भी सरकार ने नही की...जरा कल्पना कीजिए कि अगर अमेरिका में कोई भारतीय कंपनी का मालिक इतनी बड़ी घटना का जिम्मेदार होता तो क्या अमेरिका उस भारतीय को अमेरिका से बाहर निकलने देता..जैविक हथियार रखने के आरोप मे अमेरिका एक देश के पूर्व राष्ट्रपति को सरेआम फांसी देता है और दुनिया मुकदर्शक बनी रहती है. हालांकि सद्दाम हुसैन जो किया उसे माफ नही किया जा सकता है लेकिन जो गुनाह एंडरसन ने किया है क्या उसे इस अपराध के लिए माफ किया जा सकता है. आज ईराक हो या अफगानिस्तान हो इस बात का गवाह हैं कि अमेरिका की नजर में उसके नागरिकों के अलावा दूसरे देश के नागिरकों की जान माल की कितनी फिक्र है. वारेन एंडरसन ने कार पर सवार होने के पहले एक इंटरव्यू मे कहा था
NO arrest no house arrest I am free to leave India
कितना बड़ा तमाचा हमारे देश के नीति नियंताओं पर है...और कितना बड़ा सवाल हमारी न्याय प्रणाली पर भी उठता है. (मैं किसी भी राज्य के न्यायधीशों की नियत पर संदेह नही कर रहा हूं )
सवाल तो कांग्रेस के इरादों और सोनिया गांधी पर भी उठेंगे क्योंकि देश में उस समय कांग्रेस की ही सरकार थी और बगैर केंद्रीय नेतृत्व के संकेत के बिना एंडरसन की सुरक्षित विदाई का रास्ता भोपाल से तय नही हो पाता. प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि वारेन एंडरसन को छोड़ने का निर्णय भोपाल की क़ानून व्यवस्था को ध्यान मे रख कर किया गया था. अब सवाल ये उठता है कि 26 नवंबर 2008 को जब पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब को सेना ने जिंदा पकड़ा था तो क्या उस समय मुंबई की कानून व्यवस्था सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गयी थी.बिल्कुल नही...जनाब कल तक आपकी पार्टी भाजपा को ताने देती थी की आपकी सरकार के विदेश मंत्री आतंकवादियों को विमान मे बैठाकर कांधार ले जाती है लेकिन आपकी सरकार ने तो उस व्यक्ति को देश से बाहर सुरक्षित भेजा है जिस पर 25000 लोगो की मौत की जिम्मेदारी हैं..वैसे कांग्रेस पार्टी विदेशियों को देश से सुरक्षित बाहर और आरोप मुक्त करने मे ज्यादा माहिर है और ओत्तावयों क्वात्रोची का उदाहरण देश के सामने हैं खैर देश और भोपाल को इंसाफ चाहिए ..अगर अमेरिका अपने नागरिकों की जिंदगी बचाने के लिए काबूल और कांधार मे हमले कर सकता हैं तो भारत सरकार को भी भारतीयों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले एंडरसन या डेविड कोलमेन हेडली के प्रत्यर्पण करने के लिए कूटनीतिक और राजनीतिक मोर्चे पर हर संभव कोशिश करनी चाहिए. भारतीय आष्ट्रेलिया मे पीटते है और हमे आश्वासन के सिवा कुछ नही मिलता है . सवाल सिर्फ भोपाल की घटना को लेकर नही है बल्कि सवाल हमारी विदेश और कूटनीति पर भी जिस पर हमारी सरकार बड़ा गौरावान्वित महसूस करती हैं...लेकिन भारतीय सिर्फ ठगे ही जाते है....

सोमवार, 14 जून 2010

हाई री भाजपा,वाह री भाजपा

12 -13 जून को पटना मे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई और शायद सभी जानते है कि इसमे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ साथ भाजपा के 6 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए .हालाकि लेकिन गुजरात और नरेंद्र मोदी का मसला हमेशा से एक अलग विषय रहा है. 12 जून को अखबार मे एक विज्ञापन आया जिसमे मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार को एक साथ दिखाया गया जिससे व्यथित और गुस्से मे आकर नीतीश ने कानूनी कार्यवाई करने की धमकी दी और साथ साथ उन्होने यह भी कहा की बिहार मे मोदी का क्या काम .जिस तरह से नीतीश ने भाजपा को बिहार मे उसकी औकात बतायी है वो किसी भी सूरते हाल मे आश्चर्य की बात नही है . पहले उत्तरप्रदेश,फिर झारखंड मे शिबू सोरेन का भाजपा को ठेंगा दिखाया जाना ये साबित करता है भाजपा नेतृत्व मे किस तरह की उलझन है. मै यहां सिर्फ बिहार की बात करता हूं.नीतीश कुमार को नाराजगी इस बात को लेकर है कि उन्हे बिना बताये ही नरेंद्र मोदी के साथ उनकी तस्वीर क्यो छपवाई गई . नीतीश कुमार की ये बात एक हद तक सही है ...लेकिन मोदी के साथ हाथ मिलाना मुझे नही लगता है कि ये राष्ट्र या बिहार के लिए शर्म की बात है.मोदी गुजरात राज्य के निर्वाचित सीएम है जिन्हे वहां की जनता ने दो बार भारी बहुमत से सत्ता मे पहुंचाया है. अगर नीतीश को मोदी से हाथ मिलाने मे परहेज है तो फिर भाजपा से पिछले 15 साल से गठबंधन क्यो गांठे रखा है. गुजरात दंगे के बाद एनडीए से रामविलास पासवान,एम करूणानिधी,ममता बनर्जी,फारूख अबदुल्ला,मायावती एक एक कर सारे नेताओं ने भाजपा का साथ छोड़ दिया लेकिन नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ क्यो नही छोड़ा है और छोड़ेगे भी नही क्योकि उन्हे भली भांति ये पता है कि वे बीजेपी के बिना सत्ता मे वापस आ नही सकते ,लालू प्रसाद उन्हे भाव देंगे नही और कांग्रेस मे इतना दम नही है कि वे भाजपा की भरपाई को वो पूरा कर सके...गुजरात दंगे के बाद जिस तरीके से मोदी को अलग थलग करने की कोशिश हुई वो सारी की सारी बेकार हुई है और मै ये विश्वास करता हूं कि गुजरात का दंगा गोधरा में 57 निर्दोष लोगो को तालीबानी तर्ज पर मारे जाने के कारण लोगो की तात्कालिक प्रतिक्रिया थी और मै ये भी मानता हूं कि मोदी के अलावा कोई और होता तो वो भी उसी ढंग से निपटता जैसे मोदी ने निपटा है क्योकि 1984 का दंगा और मार्च 2007 का नंदीग्राम वारदात या फिर 2008 मे असम मे आदिवासियों की सामूहिक रूप से हत्या इसका जीती जागती मिसाल है.हालांकि हिंसा किसी भी चीज का समाधान नही हैं
नीतीश कुमार ने भाजपा को एक तरह से उसकी औकात बिहार मे बतायी ठीक उसी तरह जिस तरह उड़ीसा मे नवीन पटनायक ने भाजपा को उसकी औकात बतायी थी. मै ये नही समझ पा रहा हूं कि एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी जिसकी 6 राज्यो मे अपने दम पर सरकार है वो अपने सहयोगी दलों के सामने इस तरह मजबूर क्यों है. जब कर्नाटक जैसे दक्षिण राज्य मे भाजपा अपनी सरकार बना सकती है तो फिर बिहार जैसे राज्य मे क्यो नही वहां तो पहले से भाजपा का अपना एक अच्छा खासा जनाधार है. भाजपा को यह पता करना पड़ेगा कि क्यो जनाधार वाले नेता को बिहार या झारखंड मे पार्टी लाइन से अलग कर दिया गया. क्यों साफ सुथरी छवि वाले बाबू लाल मरांडी के दामन को छोड़कर भाजपा को शिबू सोरने के हाथ को थामना पड़ा. मोदी भाजपा के साथ साथ गुजरात के सीएम है और भाजपा को चाहिए कि वो इस मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे. वो बताए कि उसके लिए भाजपा ज्यादा मायने रखती है या नीतीश कुमार. राहुल गांधी का उदाहरण उसके सामने है जिन्होनें मुलायम सिंह और लालू यादव को धकिया कर यूपी और बिहार मे अकेले कांग्रेस को चुनाव लड़वाया और नतीजे सबके सामने है. भाजपा को यह पता करना पड़ेगा कि 5 साल के बिहार के शासन काल के दौरान मे उसने जमीनी स्तर पर क्यो ऐसा नेतृत्व नही खड़ा किया जिसके बदौलत भाजपा खुद चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो पाती. बैसाखी के सहारे इंसान कभी दौड़ नही सकता है उड़ीसा मे नवीन पटनायक के सहारे 10 साल तक सत्ता का सुख भाजपा लेती रही और नवीन पटनायक ने एक ही झटके मे उड़ीसा मे भाजपा को उसकी औकात बता दी.स्वस्थ प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है कि विपक्ष मजबूत हो लेकिन भाजपा पिछले 6 साल मे ऐसा करने मे असफल रही हैं. मोदी गुजरात के लिए ही नही पूरे भारत के लिए मिसाल है जिन्होने अपने कुशल नेतृत्व से गुजरात को शिखर पर पहुंचाया है. कुछ लोग ये कहते हैं कि गुजरात मे पहले से ही अकूत संपदा है मोदी ने कुछ नही किया . फिर बिहार के पास भी तो 2000 तक कोयला, अभ्रक, लोहा, यूरेनियम की खदानों का भंडार था क्यो बिहार विकास की दौड़ मे सबसे पिछड़ा रह गया. मै बिहार के भागलपुर से हूं और मै इस बात का गवाह हूं कि किस तरह जिला मुख्यालयों मे भी 18 घंटे तक लाइय नही आती है. स्कूल मे टीचर नही है तो अस्पतालों मे कोई डाक्टर नही. विश्वविधालयों के सेशन 5 -5 साल तक लेट होता है और छात्र लालटेन की रोशनी मे अपनी परीक्षा की तैयारी करते हैं.गुजरात को खुशहाल बनाने के लिए वहां की सरकार ने सुजलां सुफलां और गोकुल ग्राम परियोजना को धरातल पर उतार कर वहां के लोगो को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने का पूरा अवसर दिया ,बिहार के नेता बताए कि पिछले 60 सालों मे क्या उनके पास ऐसी कोई योजना है ..हालांकि पिछले कुछ सालों मे सड़क और कानून –व्यवस्था मे काफी सुधार आया है. नीतीश कुमार के साथ साथ बिहार के तथाकथित तारणहारों को यह जवाह देना होगा कि आजादी के 56 साल बाद भी बिहार के हिस्से मे कोई सेंट्रल यूनिवर्सिटी क्यो नही ,क्यो नही एम्स या आईआईएम की ब्रांच स्थापित नही हो पायी . क्यो नही बिहार मे निफ्ट की कोई शाखा खुल पायी. क्योंकि दिल्ली ,अहमदाबाद,सुरत,मुंबई, या जालंधर से बिहार आने वाली ट्रेनों मे बिहारी जानवर की तरह यात्रा करने पर विवश रहते है जबकि वे पूरे पैसे भारतीय रेलवे को चूकता करते है.क्यों बिहारी गुजरात ,दिल्ली या मुंबई रोजगार करने के लिए जाए बिहार को इस तरह से प्रगति क्यों नही हो पायी कि दूसरे राज्यों के लोग बिहार शिक्षा और रोजगार के लिए आते .वजह साफ है बेरोजगारी और भूखमरी केवल तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले नेताओं ने बिहार की जनता की पीड़ा को नही समझा. आप बिहार जाकर खुद देख सकते है मई जून के महीने मे जब निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार के अभिभावक अपने बच्चों को बिहार से बाहर एडमीशन करवाने के लिए एड़ी चोटी एक कर देते है और इसलिए बिहार से प्रतिभा और पैसे दोनों का पलायन भारी पैमाने पर हुआ. वहां पर कोई ऐसा मैनेजमेन्ट,पत्रकारिता, टेक्नालांजी या फिर लां का ऐसा विश्वसनीय संस्थान खुल नही पाया जिस पर वहां के छात्र भरोसा कर सके..आपकी किसी भी व्यक्ति से मतांतरण हो सकता है और राजनीति मे ऐसा होता भी है लेकिन सिर्फ सियासी मकसद पूरा करने के लिए किसी लोक्रपिय और सटीक काम करने वाले चेहरे को इस तरह रूसबा करना किसी भी दृष्टिकोण से जायज नही हैं....