रविवार, 14 फ़रवरी 2010

...अब पूरी दुनिया को बना दो निकम्मा !


क्रिकेट ने तो अभी तक सिर्फ एशियाई मुल्क को ही निकम्मा बनाया था, लेकिन अब लगता है पूरी दुनिया ही निकम्मी हो जाएगी। क्रिकेट के पीछे अभी तक तो सिर्फ हम..हमारा पड़ोसी पाकिस्तान...बांग्लादेश और श्रीलंका ही भागा करते थे..लेकिन अब चीन..अमेरिका..जर्मनी और जापान की टीमें भी क्रिकेट के चौके-छक्के के पीछे भागते हुए दिखाई देगी। वर्ल्ड कप...चैंपियंस ट्रॉफी जैसे बड़े आयोजन के बाद जब आईपीएल का क्रिकेट का नया अवतार हुआ तो क्रिकेट का साख भी बढ़ी और लोकप्रियता भी...लेकिन साथ ही सवाल भी उठा कि क्या क्रिकेट की आड़ में दूसरे खेल तबाह तो नहीं हो रहे ...। जवाब मिला हो या नहीं ... ये तो पता नहीं... लेकिन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक काउंसिल ने जब से क्रिकेट को ग्रीन स्गिनल दिखाई है..तब से ये बहस जिंदा जरूर हो गई है । ओलंपिक की अहमियत इसलिए अभी तक सबसे ज्यादा है क्योंकि ... स्टेमिना .. कुशलता और धैर्य का इसी आयोजन (ओलंपिक) में सबसे बड़ा इम्तिहान होता है... इस आयोजन में कई ऐसी स्पर्धा शामिल होती है...जो विश्व में या तो लोकप्रिय नहीं है ... या फिर काफी पिछड़ी है।
क्रिकेट फिलहाल सबसे लोकप्रिय खेल है...और जाहिर है अगर ओलंपिक में इसकी इंट्री होगी तो वो इंटरटेन करने के मामले में बाकि सारे खेलों को दबा देगा। अभी तक ओलंपिक में सिर्फ 26 खेल में 30 वर्ग के 300 स्पर्धाएं ही आयोजित होती थी... लेकिन 2016 में रियो डि जेनारियो में होने वाले ओलंपिक में दो खेल और बढ़ जाएंगे...क्योंकि इस ओलंपिक के लिए आयोजन समिति में गोल्फ और रग्बी को मंजूरी दे दी है। लेकिन 2020 ओलंपिक में खेलों की संख्या और भी बढ़ जाएगी...क्योंकि आयोजन समिति ने इस वर्ष के ओलंपिक में क्रिकेट के साथ-साथ क्लाइम्बिंग के साथ-साथ पावर बोटिंग को भी शामिल कर लिया है। सवाल ना रग्बी.. ना गोल्फ.. ना पावर बोटिंग और ना तो क्लाइम्बिंग को ओलंपिक में शामिल करने पर है.. सवाल है तो क्रिकेट पर ...सवाल नहीं डर है..... डर इस बात का.... कि कहीं क्रिकेट का बुखार पूरी दुनिया को ही अपनी चपेट में ना ले ले..... क्रिकेट में मैडल जीतने के चक्कर में अमेरिका.. रुस..और जर्मनी जैसी विश्व की टॉप मेडलिस्ट टीम दूसरे खेल से अपना ध्यान भटकाकर सिर्फ क्रिकेट के पीछे ही ना भागने लगे। ऐसे देखा जाए तो क्रिकेट को ओलंपिक में शामिल करना हमारे लिए ख़ुशख़बरी ही है...क्योंकि अगर ओलंपिक में क्रिकेट को शामिल किया गया तो भारत की टीम ही गोल्ड मैडल की प्रबल दावेदार होगी। साफ है कि क्रिकेटरों के लिए और एशियाई देश के लिए भले ही ओलंपिक समिति का फैसला एक ख़ुशख़बरी हो....लेकिन बाकी खेलों के लिए ये अच्छी ख़बर बिल्कुल भी नहीं हैं।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

ख़ुशख़बरी ! प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए ख़ुशख़बरी



ख़ुशख़बरी ! …. ख़ुशख़बरी ! ….ख़ुशख़बरी ! ….प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए ख़ुशख़बरी ! ….इस बार वेलेंटाइन डे पर उन्हें कोई नहीं रोकेगा.... कोई उन्हें गार्डन में एक-दूसरे से मिलने पर नहीं टोकेगा...कोई उन्हें एक-दूसरे को फूल देने पर नहीं पिटेगा....रेस्टोरेंट में साथ खाना खाने पर नहीं पकड़ेगा और ना ही पब में साथ डांस करने पर जबरदस्ती शादी करा देगा....क्योंकि सेना (शिवसेना) इस बार दूसरे कामों में व्यस्त है ...जी हां वही किंग ख़ान की फिल्म माई नेम इज़ खान के ख़िलाफ़ धमा-चौकड़ी मचाने में....बहुत दिन से सुन रहा हूं....शिवसेना ने वहां पोस्टर जला दिया.. उसका बैनर फाड़ दिया...वहां उत्पात मचा दिया। सुनकर बूरा भी लगा और अच्छा भी.... !!! बूरा इसलिए कि, देखो अपने देश में क्या कुछ हो रहा है... और अच्छा इसलिए कि.... चलो ठीक है … इसी बहाने सेना को कुछ काम तो मिला...!!!!! पिछले कुछ सालों से ठाकरे की ये सेना तो बिल्कुल निकम्मी ही हो गई थी...ना तो हथियार में धार बचे थे... और ना ही जुबान पर आक्रमकता ....अच्छा हुआ..!!!!! कुछ दिनों के लिए ही सही....इन कागजी शेरों को दहाड़ने का (नारेबाज़ी) का मौका तो मिला। नहीं तो, पूरे साल में ये, सिर्फ एक ही दिन तो काम करते हैं...और वो भी 14 फरवरी यानि वेलेंटाइन डे को....इधर-उधर गार्डंस में घूमकर प्रेमी-प्रेमिकाओं को पकड़ना...रेस्टोरेंट जाकर सुकून से बैठे प्रेमी जोड़ों को मारना-पिटना...जबरदस्ती शादी कराना ... यही तो इनका काम बचा था। वो तो शुक्र हो, शाहरुख़ खान और IPL का...जिन्होंने ठाकरे के सैनिकों को 14 फरवरी के पहले दूसरे काम में फंसा दिया और इन्हे उनके मेन मोटो ( वेलेंटाइन डे ) के पहले ही थका दिया।... सोचिए !!!! अगर शाहरुख ने आईपीएल को लेकर बयान नहीं दिया होता...तो क्या होता ???? वही होता, जो हर साल होता है, यानि सिर्फ एक दिन और वो भी तीन-चार घंटे के लिए सेना बाहर निकलती....दो-तीन घंटे तक हाथ में भगवा झंडा लेकर इधर-उधर धमा-चौकड़ी मचाती ... वेलेंटाइन डे हाय-हाय के नारे लगाती... प्रेमी-प्रेमिकाओं को पकड़ती...मारती-पिटती और जबरदस्ती शादी कराती। चलो, इस बार कम से कम प्रेमी-प्रेमिका सुकून प्रेम का इजहार तो कर सकेंगे। अब पता नहीं ये प्रेमी-प्रेमिका किसका थैक्स करें ? बाल ठाकरे का (जिन्होंने शाहरुख के खिलाफ अपनी सेना को लगाकर उन्हें वेलेंटाइन के पहले थका दिया) या फिर शाहरुख खान का (जिन्होंने आईपीएल में पाकिस्तानी प्रेम का इज़हार किया) ! खैर जो भी हो हम तो बस यही कहेंगे... good luck $ Cherr!!!!!! Up

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

मुंबई बाल ठाकरे की बपौती है क्या ?


सब जानते हैं कि बाल ठाकरे जो कर रहे हैं वो ग़लत है...सबको पता है कि बाल ठाकरे का बयान संविधान के खिलाफ़ है..तोड़फोड़..भड़काऊ बयान...और सरेआम गुंडागर्दी आपसी सौहार्द को बिगाड़ रही है... लेकिन फिर भी सरकार क्यों बार-बार ठाकरे परिवार के सामने सरेंडर कर रही है समझ में नहीं आ रहा...? क्यों बार-बार हम गिड़गिड़ा रहे हैं और वो हमें ठेंगा दिखा रहे हैं। क्या हमारी सरकार पूरी तरह से नपूंसक हो गई है ? क्यों ठाकरे परिवार के गिरेबान तक पहुंचने से पहले कानून के हाथ कांपने लगते हैं। कानून में कमी है या फिर केंद्र-महाराष्ट्र सरकार की इच्छाशक्ति में । क्यों नहीं बाल ठाकरे और राज ठाकरे जैसे नेता सलाखों के पीछे दिख रहे हैं। अभी कल की ही बात है कि शरद पवार बाल ठाकरे के निवास स्थान मातोश्री पहुंचे और उनसे अपना गुस्सा शांत रखने का अनुरोध किया। ठाकरे के सामने हमारे केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने गिड़गिड़ाया....कहा कि आप ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को मुंबई में खेलने दें..... और बाल ठाकरे ने मालिक की तरह, कहा... ठीक है देख लेंगे। ऐसा लगा मानों मुंबई देश की नहीं बाल ठाकरे की बपौती हो । ना तो बाल ठाकरे के पास गिड़गिड़ाने में शरद पवार को शर्म आई...और ना ही बाल ठाकरे को कुछ बोलते हुए लाज आई...ऐसा लगा मानों मुंबई में देश का संविधान नहीं.. बाल ठाकरे का संविधान चलता हो। मतलब बाल ठाकरे ने जो कह दिया.. वही सही है..बाकि सब ग़लत। कुछ दिन पहले तक ठाकरे पाकिस्तानी खिलाड़ियों के पीछे पड़े थे और अब ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के पीछे पड़े हैं। ठाकरे कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमला हो रहा है तो फिर हम उस देश के खिलाड़ी को, कैसे अपने देश में खेलने दें। ठाकरे जिस तरह का बयान दे रहे हैं...उसे देखकर तो यही लगता है मानों पूरी दुनिया-जहान का उन्होंने ही ठेका ले रखा है। कौन कहां खेलेगा...कौन किसे अपनी टीम में लेगा....और कौन किसके ख़िलाफ़ क्या बोलेगा.. सब ठाकरे के ही हुक्म से बोलेगा और चलेगा। ना तो बाल ठाकरे को अपनी उम्र का लिहाज है और ना ही देश की अखंडता का अहसास...कितनी शर्म की बात है कि देश का केंद्रीय मंत्री आज एक अदने से नेता..जिसकी खुद की ना तो कोई औकात है..और राष्ट्रीय राजनीति में कोई पकड़ ... उसके पास जाकर हाथ फैला रहा है.... अनुरोध कर रहा है... कह रहा है भाई... हम पर रहम करो ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों को मुंबई में खेलने दो। शरद पवार साहब आपकी सत्ता है...आपके पास ताकत है..केंद्र में आपकी सरकार है और महाराष्ट्र में भी आपका ही हुक्म चलता है, तो फिर क्या जरूरत पड़ गई जो बाल ठाकरे जैसे नेता के पास गिड़गिड़ाने की....उत्पाती शिवसैनिक को पकड़िए...जमकर धुनिए और जेल में डालिए...देखिए फिर कैसे इन शिवसैनिकों की सिट्टी-पिट्टी गुम होती है। एक दिन चिल्लाएंगे-दो दिन चिल्लाएंगे ... तीसरे दिन कोई शिवसैनिक घर से नहीं निकलेगा.... पवार साहब.! कानून हमारे देश का बहुत बड़ा है और डंडे में बहुत ताकत है....हां, बस इस्तेमाल करना आना चाहिए। हमें पता है जो हम बोल रहे हैं ...उससे ना तो बाल ठाकरे को कोई फर्क पड़ेगा और ना ही शरद पवार को। क्योंकि सब राजनीति है...और राजनीति के आगे बड़े से बड़ा नेता भी नामर्द बन जाता है।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

आखिर सिंगल में कब मिलेगा ग्रैंड स्लेम ?


रविवार दोपहर से ही लिएंडर पेस मीडिया की सुर्खियों में थे। करीब एक घंटे तक ब्रेकिंग न्यूज चलने के बाद..स्पेशल स्टोरी और आधे घंटे तक का स्पेशल प्रोगाम चलाने का जो दौर शुरू हुआ, जो देर रात ही नहीं, सोमवार दोपहर तक जारी रहा। वजह ऑस्ट्रेलियन ओपन में पेस का मिक्सड डबल्स का खिताब जीतना । बेशक लिएंडर पेस ने जो किया वो देश के लिए गौरव की बात है, हम भी उनके कायल हैं और उनके प्रदर्शन का लोहा मानते हैं, उनकी कामयाबी को देख हमारा सीना भी चौड़ा हो जाता है। लेकिन आपको लगता नहीं ....? कि सवा अरब जनसंख्या वाले देश में सिर्फ एक ग्रैंड स्लेम और वो भी सिंगल में नहीं मिक्सड डबल्स में... महज एक सांत्वना सरीखा ही है। देश में ऐसे कहने को तो, कई दमदार युवा खिलाड़ी हैं.. और शानदार अनुभवी खिलाड़ी भी.... तो फिर उन खिलाड़ियों में एक भी सिंगल ग्रैंड स्लेम जीतने का माद्दा क्यों नहीं है ? आखिर ग्रैंड स्लेम के सिंगल मुकाबले में उनका दम क्यों नहीं दिखता....क्यों हमारी कामयाबी सिर्फ डबल्स और मिक्सड डबल्स तक ही सिमटी रह जाती है ? क्यों नहीं हम सिंगल में क्वार्टर फाइनल तक भी पहुंच पाते ? कहते हैं आप आदर्श बनिए! दुनिया आपके पदचिन्हों पर चलने के लिए तैयार है। आज टेनिस की दुनिया में रोजर फेडरर, जस्टिन हेनिन जैसे आदर्श मौजूद हैं, तो फिर हमारे खिलाड़ी, उन आदर्श के पदचिन्हों पर क्यों नहीं चलते ? क्यों नहीं हमारे देश में भी फेडरर .. नाडाल....एंडी मर्रे और डोकोविच जैसे खिलाड़ी पैदा होते हैं ? क्यों सवा अरब लोगों की जनसंख्या वाले देश में अभी तक एक ऐसा सूरमा पैदा नहीं हुआ ... ? जो सीना ठोककर ये कह सके कि मैं जीतूंगा देश के लिए सिंगल में ग्रैंड स्लेम! आखिर कब तक हमारा देश सिर्फ लिएंडर पेस और महेश भूपति की ही कामयाबी पर गर्व करता रहेगा.. क्या हमारी निगाहों को नया लिएंडर पेस...अलग महेश भूपति और दूसरी सानिया मिर्जा के दीदार के लिए अभी और इंतजार करना होगा। 11वां ग्रैंड स्लेम जीतकर महेश भूपति की बराबरी करने वाले लिएंडर पेस ने कहा कि वो फेडरर के नक्शे कदम पर चलना चाहते हैं..लेकिन मेरा सवाल लिएंडर से ये है कि सिर्फ वो नक्शे कदम पर चलना चाहते हैं या फिर चलेंगे भी...क्या हम सिर्फ क्रिकेट में ही नंबर वन बनेंगे, क्या हमारे देश का कोई खिलाड़ी कभी दुनिया का नंबर एक खिलाड़ी नहीं बनेगा। क्या हमारे देश के खेलप्रेमी सिर्फ फेडरर और नाडाल की जीत पर ही ताली बजाते रह जाएंगे....या फिर हम अपने देश के खिलाड़ी पर कभी इतराएंगे ?