गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

सिडनी में जय हो !


जय हो ... स्लमडॉग मिलियनियर का गाना आपने तो सुना ही होगा...मैंने भी सुना है..लेकिन जहां मैंने सुना..वहां आपने नहीं सुना होगा...और सच कहूं आप वहां सुनने की उम्मीद कभी कर भी नहीं सकते हैं। मैंने जय हो को गूंजते सुना सिडनी हार्बर ब्रिज पर। जी हां वही सिडनी...जो हमसे-आपसे लाखों मील तो दूर है हीं...हमारी भाषा, संस्कृति और रीति रिवाज से भी उनका कोई सरोकार नहीं है..लेकिन ऑस्ट्रेलिया की राजधानी सिडनी में जय हो गूंजा और खूब गूंजा....मौका-ए-जश्न था, नए साल के स्वागत समारोह का। भारत में 31 दिसंबर को शाम के तकरीबन साढे छह बजे थे...लेकिन ऑस्ट्रेलिया में रात गहरा चुकी थी... नए साल के जश्न की शुरुआत हो चुकी थी। मेरी तरह आप भी ये सुनकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि नये साल के जश्न में सिडनी के हार्बर ब्रिज में जो सार्वजनिक समारोह चल रहा था उसमें सबसे पहला गाना बजा 'जय हो'. सुनकर आश्चर्य भी हुआ...और गर्व भी। आश्चर्य इस बात का कि हिंदी भाषा का जिस देश में दूर-दूर तक वास्ता नहीं हो..वहां सार्वजनिक समारोह में जय हो का गाना गूंज रहा है... और गर्व इस बात कि भारत का प्रभुत्व अब सात समंदर लांघ ऑस्ट्रेलिया भी पहुंच गया है। मैंने सुना भी है और महसूस भी किया है.... कि गाने के बोल हकीकत से ज्यादा काल्पनिक होते हैं...लेकिन जय हो में जो बोल हैं वो काल्पनिक से ज्यादा हकीकत दिख रहे हैं ... जय हो में एक बोल है 'आजा-आजा हिंद शामियाने के तले, आजा जरीवाले नीले आसमान के तले' और सच आज पूरा जमाना धीरे-धीरे हिंद शामियाने के तले आता जा रहा है । जो काम हमारे राजनेता..हमारी सेना ने नहीं किया...वो काम कर दिखाया एक संगीत ने। ऑस्ट्रेलिया में जय हो के बाद अब हर देशवासी को इंतजार है .... अमेरिका..रुस...और चीन जैसे देशों में भी जय हो के गूंजने की। सच संगीत में खूब शक्ति होती है...हमें फक्र है ए.आर. रहमान के म्यूजिक पर...गुलजार की कलम पर...जि्न्होंने हाथों की अंगुली से और कलम की मजबूती से पूरी दुनिया में हिंदुस्तान को पहचान दिलाई।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

तुमको ना भूल पाएंगे !




श्रद्धांजलि....ये शब्द अपने से कई गुना ज्यादा बड़े मायने को खुद में सहेजे हुए हैं। श्रद्धांजलि यानि उस शख्सियत से जुड़ी आपकी यादें...आपका समपर्ण...और उस शख्सियत के प्रति आपकी भावनाएं। आज मैं एक ऐसी ही शख्सियत को सलाम कर रहा हूं...जिन्हे मैं ज्यादा जानता तो नहीं था, लेकिन उनका कायल जरूर था। अशोक उपाध्याय...ये नाम मीडिया जगत में ज्यादा मशहूर तो नहीं, लेकिन Etv से जुड़े हरेक शख्स के लिए इस नाम से बड़ा नाम कोई और नहीं हो सकता। 25 दिसंबर 2009 ... शुक्रवार का दिन था और हर दिन की तरह करीब साढे दस बजे मैं दफ्तर पहुंचा। आते ही मेरे एक पुराने अजीज मित्र मुझे मिल गए। अमूमन वो आते ही मेरे बारे में कमेंट किया करता था, लेकिन आज उसके भाव बदले हुए थे, मैंने उसे नजरअंदाज कर एडिटिंग टेबल की तरफ बढ़ा, तो वो तेजी से मेरी तरफ लपके, उसे देख मैंने यही सोचा कि शायद फिर वो मजा करने के मूड में है। पहले तो वो कुछ देर खड़े रहे फिर सवालिया लहजे में पूछा " अरे पता चला अशोक उपाध्याय की डेथ हो गई" पहले तो लगा आज फिर वो मुझे गच्चा दे रहा है...लेकिन
अशोक उपाध्याय की शख्सियत ऐसी है, जिनके बारे में मजाक करे और वो उनकी मौत के बारे में .. विश्वास नहीं हुआ। इसलिए दोबारा पूछा ..लेकिन इतना ही पूछ पाया, क्या सच में... उसने मुझे एक मैसेज दिखाया। फिर क्या था...जुबान खुली रह गई, हाथ में हेडफोन पकड़ा रह गया और ना जाने मैं कहां हो गया। पुरानी यादें निगाहों में तैरने लगी, जब ईटीवी में आया तब की..जब उन्हे घर पर बैठकर टीवी में देखा करता था तब की...विश्वास ही नहीं हो रहा था...। और मैं क्या ? मेरी तरह कई ऐसे लोग थे जिन्हे इस बात यकीन नहीं था कि सुंदर काया के मालिक और बेजोड़ आवाज के स्वामी अशोक उपाध्याय अब हमारे बीच नहीं हैं। अशोक उपाध्याय को ऐसे तो कई बार टीवी पर देखा, लेकिन पहली बार अपनी निगाहों से देखा 7 अगस्त 2006 को। मुझे ईटीवी में आए हुए करीब नौ दिन हो चुके थे और मेरे सामने ही उनकी डेस्क (राजस्थान डेस्क) थी। जैसा सोचा था, वैसा ही पाया अशोक उपाध्याय को। सच कहूं मैंने पांच साल के अपने पत्रकारिता के करियर उनके जैसा खुबसूरत व्यक्तित्व नहीं देखा। दिखने में जितने खुबसूरत, व्यवहार और दिल के उतने ही सच्चे और साफ। क्रिकेट उनका पसंदीदा खेल था और मैच के बारे में वो अक्सर टिप्पणी करते-करते मेरे स्पोर्ट्स डेस्क तक चले आते थे। कभी-कभी मैं उनसे वीओ कराने जाता था, अधिकांश मौकों पर तो उन्होंने निराश नहीं किया..अगर कभी इनकार भी किया तो इतने प्यार से ..कि कभी बुरा लगा ही नहीं...बाद वो ईटीवी में नेशनल डेस्क के इन्चार्ज बने और फिर वीओआई चले गए। मेरा उनसे कोई संपर्क नहीं रहा, लेकिन फिर उनके बारे में जानने की इच्छा जरूर रही..पूछता रहा उन्हे जानने वालों से..आज वो हमारे बीच नहीं है। वीओआई में उनकी जगह किसी और को नियुक्त कर लिया जाएगा, लेकिन उनकी गूंजती आवाज, खुबसूरत काया और बात करने का उनका जुदा अंदाज .. हमेशा उनकी याद दिलता रहेगा। भले हीं वो इस दुनिया में ना हो, लेकिन वो हमेशा हमारे दिल में रहेंगे..एक आदर्श सीनियर की तरह...बुलंद आवाज के स्वामी की तरह और मीडिया की रणभूमि के एक सच्चे सिपाही की तरह...। ...एक मीडिया कंपनी की गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली... ने हमारे एक अनमोल सितारे को हमसे छिन लिया। अशोक उपाध्याय को मेरे..मेरे साथियों और ज़ी 24 घंटे की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि....